क्या आप जानते है कि भगत सिंह को फाँसी देने के बाद दिसम्बर 1931 में दो बंगाली क्रांतिकारी स्कूल छात्रा शान्ति घोस और सुनिति चौधरी ने जिला अधिकारी की हत्या कर दी थी।
क्या आप जानते है कि भगत सिंह को फाँसी देने के बाद दिसम्बर 1931 में दो बंगाली क्रांतिकारी स्कूल छात्रा शान्ति घोस और सुनिति चौधरी ने जिला अधिकारी की हत्या कर दी थी।

क्या आप जानते है कि भगत सिंह को फाँसी देने के बाद दिसम्बर 1931 में दो बंगाली क्रांतिकारी स्कूल छात्रा शान्ति घोस और सुनिति चौधरी ने जिला अधिकारी की हत्या कर दी थी।
शान्ति घोष और सुनिति चौधरी-ये नाम आज़ादी की उस कहानी के पन्नों में दर्ज हैं, जिन्हें अक्सर इतिहास की मुख्यधारा से भुला दिया जाता है। ये दोनों बंगाल की युवा क्रांतिकारी छात्राएं थीं, जिन्होंने मात्र 16 और 17 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ ऐसी साहसिक कार्रवाई की जिसे सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
यह घटना दिसंबर 1931 की है। इससे कुछ महीने पहले, भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी। इस फैसले ने पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ा दी थी, विशेषकर युवाओं में जो पहले से ही आज़ादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। उन्हीं में से थीं शान्ति घोष और सुनिति चौधरी, जो राष्ट्रवादी संगठन ‘युगांतर’ की सक्रिय सदस्य थीं।
दोनों लड़कियों ने प्लान बनाया और ब्रिटिश अधिकारी चार्ल्स स्टीवर्ट, जो उस समय त्रिपुरा के कोमिला जिले के मजिस्ट्रेट थे, की गोली मारकर हत्या कर दी। उन्होंने यह कार्य एक स्कूल की छात्रा बनकर अंजाम दिया। इतनी कम उम्र में इतना साहसिक कदम उठाना अपने आप में बेमिसाल था।
घटना के बाद वे पकड़ी गईं और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। उन्होंने जेल में भी हार नहीं मानी और वहां रहकर भी क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करती रहीं। ये दोनों बेटियां उस समय की महिलाओं की सोच और शक्ति का उदाहरण थीं, जब समाज में महिलाओं को लेकर सीमित सोच पनपी हुई थी।
शान्ति घोष और सुनिति चौधरी ने यह साबित किया कि देशभक्ति उम्र की मोहताज नहीं होती और न ही किसी लिंग की।
उनका बलिदान और साहस आज भी हमें प्रेरणा देता है कि सच्चे इरादे और मजबूत हौसले से कोई भी बदलाव संभव है।
भगत सिंह को फाँसी देने के बाद दिसम्बर 1931 में दो बंगाली क्रांतिकारी स्कूल छात्रा शान्ति घोस और सुनिति चौधरी ने जिला अधिकारी की हत्या कर दी थी।