त्रि-विद्-कुक्षि सिद्धांत स्वस्थ्य की कुंजी है – आचार्य बलूनी
छ: दिवसीय स्थापत्य एवं ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन आचार्य श्री सुशील बलूनी जी ने मानव शरीर को उसकी आत्मा का निवास स्थान बताया
त्रि-विद्-कुक्षि सिद्धांत स्वस्थ्य की कुंजी है – आचार्य बलूनी
बजाज हिन्दुस्थान शुगर लिमिटेड, इकाई कुन्दरखी में चल रहे छ: दिवसीय स्थापत्य एवं ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन आचार्य श्री सुशील बलूनी जी ने मानव शरीर को उसकी आत्मा का निवास स्थान बताया I बलूनी जी के अनुसार शरीर का रक्षण आत्मा के सुचारू रूप से रहने के लिए नितांत आवश्यक है I
60% रोग पेट से तथा 30% रोग मन व बुद्धि के कारण होते हैं. हमे भोजन जाग्रत होकर करना चाहिए, उदर की भूख को तीन भागों में विभाजित कर 33% भोजन, 33% जल तथा 33% हवा व पाचन के लिए छोड़ना चाहिए I यही त्रि-विद-कुक्षि सिद्धांत है. इससे पाचन सुदृढ़ होगा व प्राण शक्ति मजबूत होगी I अधिक खाने से शरीर में बिमारियों का निर्माण होता है I उनके अनुसार यह त्रि-विद-कुक्षि का सिद्धांत हीं उत्तम स्वस्थ्य की कुंजी है I यदि शरीर स्वस्थ व निरोगी होगा, मानव तभी दायित्व निर्वहन, जगत कल्याण तथा आत्म कल्याण के कार्यों को निष्पादित कर सकता है I
आज की कथा में आचार्य बलूनी ने खाने-पीने, श्वास लेने तथा शयन के नियमों पर विशेष प्रकाश डाला I आचार्य बलूनी जी ने बताया की शरीर के साथ-साथ मन के स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए I जीवन को जाग्रत हो कर अपनी बुद्धि के मार्गदर्शन में जीना चाहिये I
आचार्य जी ने चौरासी लाख योनियों में भटकती आत्मा किस प्रकार, कितनी तपस्या के बाद मन देह हासिल करती है, इस पर विशेष व दीर्घ चर्चा की I साथ हीं मनुष्य के जीवन के मिलने पर मानव जन्म सम्बन्धी कर्मो व् कर्तव्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गृहस्थ के साथ-साथ वानप्रस्थ व सन्यास के दायित्वों का यदि सुचारू रूप से निर्वहन किया जाय तो निश्चित आत्म कल्याण होगा व मनुष्य अपने आध्यात्मिक लक्ष्य को भी पूर्ण प्राप्ति करेगा I
पांचवे दिन की कथा में अनेक गणमान्य कृषक भाइयों श्री रामशंकर सिंह (सेमरीकलां), श्री विश्राम सिंह (सेमरीकलां), श्री देवेन्द्र सिंह (किन्धौरा), श्री गंगा सिंह (प्रधान परासपुरवार), श्री हरिबहादुर सिंह (परासपुरवार), श्री दीप नारायण तिवारी (किन्धौरा), श्री राम बालम सिंह (परासपुरवार), श्री वैभव सिंह (सुशेला) सहित भारी संख्या में किसान भाइयों ने परिवार सहित आकर कथा का श्रवण किया I