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मृत्यु भय मिटाकर भगवदीय भाव जगाती है भागवत कथा, आचार्य विनोद

श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन राजा परीक्षित प्रसंग का किया बखान

 

 

इटियाथोक,गोंडा।कस्बा इटियाथोक में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन अयोध्या धाम के सुप्रसिद्ध कथा वाचक आचार्य विनोद जी महाराज ने राजा परीक्षित की रोचक एवं सारगर्भित कथा सुनाई। उन्होंने कहा, राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हुए जब शुक देव जी महाराज को छह दिन बीत गए,और तक्षक नाग के काटने से मृत्यु होने का समय मात्र एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ। अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था। तब शुक देव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की। राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोग वश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुंचा। उसे रास्ता ढूंढते- ढूंढते रात्रि हो गई और भारी वर्षा होने लगी।जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा। रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।वहां पहुंचकर उसने एक बहेलिये की गंदी झोंपड़ी देखी।

वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी। उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की, बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी- कभी यहां भटकते आ जाते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूं, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं। इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूं।

इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा। राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहां तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है, बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया। राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब उस राजा को भी परम प्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा। वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा। राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। कथा सुनाकर शुक देव जी ने महाराज परीक्षित से पूछा,” परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ? परीक्षित ने उत्तर दिया,”भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है। “श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा,” हे राजा परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहां से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?” राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।

एक जीव अपनी मां की कोख से जन्म लेता है तो अपनी मां की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहां (इस कोख) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूंगा। और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो (उस राजा की तरह हैरान होकर) सोचने लगता है कि मैं ये कहां आ गया (और पैदा होते ही रोने लगता है) फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहां इस संसार की गंध ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहां से जाना ही नहीं चाहता है। “जीवन का सत्य, आत्म कल्याण है ना की भौतिक सुख !” जिस प्रकार मैले दर्पण में सूर्य देव का प्रकाश नहीं पड़ता है उसी प्रकार मलिन अंतःकरण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता है, अर्थात मलिन अंतःकरण में शैतान अथवा असुरों का राज होता है ! अतः ऐसा मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनेक दिव्य सिद्धियों एवं निधियों का अधिकारी नहीं बन सकता है ! “जब तक मन में खोट और दिल में पाप है, तब तक बेकार सारे मंत्र और जाप है !” सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है, आवश्यकता है उसे आचरण में उतारने की।

मुख्य यजमान गायत्री देवी, नवल किशोर सोनी, अखिल भारतीय अग्रवाल समाज सम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष उत्तम बंसल, राजेश द्विवेदी, रवि शुक्ल, मधुसूदन शुक्ल, रामकिशोर, पीतांबर धारी मिश्र, जितेंद्र प्रकाश मौर्य, बजरंगी प्रसाद, उमाशंकर, लक्ष्मन, रामकिशोर सोनी, ब्रजकिशोर, अनमोल सोनी सहित असंख्य महिला व पुरुष श्रद्धालु मौजूद रहे।

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