भगवान की शरणागत में जाने से मिलता है भक्ति, ज्ञान और वैराग्य: आचार्य विनोद
भगवत् शरणागति ही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है: आचार्य विनोद
इटियाथोक,गोंडा। जो भगवान को शरणागत होते हैं, उन्हें भक्ति, दर्शन और संसार से वैराग्य प्राप्त होता है। ज्ञान होने के बाद भी वैराग्य नहीं मिलता, शरणागति होने पर ही वैराग्य मिलता है।यह बात शुक्रवार को आचार्य विनोद ने श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कही।संगीतमय कथा का आयोजन इटियाथोक कस्बे में नवल किशोर सोनी ने किया है।
कथा व्यास आचार्य विनोद जी महाराज ने कहा,कि शरणागति ही सर्वोच्च भक्ति है, छोटे से बच्चे की तरह भगवान के प्रति हमारे मन में पूर्ण विश्वास होना चाहिए, जैसे छोटा बच्चा अपने माता-पिता पर पूर्ण विश्वास रखता है।आप सभी देखे होंगे, कभी-कभी पिता अपने बच्चे को गोद में दुलारते हुए अपने हाथों से हवा में उछाल देते हैं, उछालने पर बच्चा गिरने के डर से रोता नहीं है, बल्कि हवा में उछलकर बच्चा और खिलखिला कर हंसता है, उसे अपार खुशी मिलती है, क्यों!, क्योंकि बच्चे को अपने पिता पर पूर्ण विश्वास होता है, कि उसके पिता उसे गिरने नहीं देंगें, गिरने के पहले उसे बचा लेंगे।ठीक इसी प्रकार हमें, भगवान में भी पूर्ण विश्वास होना चाहिए। प्रभु कहते हैं कि हे ! जीव सभी प्रपंचों, झंझटों को छोड़कर, केवल मेरे बनकर रहो, और मेरी भक्ति करो।प्रभु को सर्वाधिक प्रेम जब जीव के लिए उमड़ता है,तो भगवान जीव को अपनी सर्वाधिक प्रिय भक्ति प्रदान करते हैं।
*भक्ति का सुगम मार्ग है भागवत कथा*
कथा व्यास ने कहा कि भक्त दो प्रकार के होते हैं। ज्ञानी भगवान का बड़ा बेटा है, और दूसरा भक्त है, जो नन्हे बालक के समान पूर्णरूपेण अपने आराध्य भगवान पर मां की भांति निर्भर रहता है। शास्त्रों में ज्ञानी को बंदर के बच्चे की उपमा दी गई है, बंदर का छोटा बच्चा अपनी मां को बड़ी मजबूती से पकड़े रहता है, मां कितना ही उछल कूद करे, उसका बच्चा कभी उसका पेट नहीं छोड़ता है, इसी प्रकार ज्ञानी को भी अपने ज्ञान और ध्यान के बल पर भगवान को मजबूती से यत्न पूर्वक आराधना करते हुए सदैव भगवान से जुड़े रहना होता है।और भक्त को बिल्ली के बच्चे की भांति माना गया है, बिल्ली का बच्चा स्वयं अपने मां को नहीं पकड़ता है, बल्कि मां ही अपने बच्चे को अपने दांतो से मुंह में दबाकर यहां वहां लेकर जाया करती है, बच्चा चुपचाप अपने मां के मुख में लटक जाता है, कोई विरोध नहीं करता है, क्योंकि बच्चे को अपनी मां पर पूर्ण भरोसा होता है कि, उसकी मां उसे जहां भी लेकर जा रही है, सुरक्षित जगह पर ले जा रही है, उसका हित कर रही है, इसी प्रकार भक्त भी भगवान की इच्छा पर निर्भर रहते हैं। भगवान भी मां की भांति अपने भक्तों की रखवाली करते हैं।
*समर्पण ही सबसे बड़ी भक्ति*
भक्त को जीवन में प्रभु को अपना सब कुछ समर्पण कर देना चाहिए, शरणागति ही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है। भगवान अपने भक्तों को कभी डूबने नहीं देते(अर्थात कभी पतन नहीं होने देते), क्योंकि भक्त अगर डूब जाए तो भगवान का यश भी लेकर डूबेगा, इसीलिए प्रभु कभी ऐसा नहीं होने देते।भागवत कथा में क्षेत्रीय धर्मानुरागी कथा प्रेमियों की भारी भीड़ उपस्थित रही,लोग बड़े उत्साह और भाव के साथ देर रात तक कथा के अमृत रस में गोता लगाते रहे। क्षेत्रीय जनता में सर्वत्र कथा की चर्चा रही।