अक्षय नवमी को किये पुण्य का क्षय नहीं होता, आचार्य विनोद
भागवत कथा में इटियाथोक थाना प्रभारी समेत कई गणमान्य लोग सम्मिलित हुए
इटियाथोक,गोंडा। इटियाथोक बाजार में चल रही आठ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के दौरान श्रद्धालुओं की संगत को संबोधित करते हुए कथा व्यास आचार्य विनोद जी महाराज ने कहा कि”यदि किसी व्यक्ति ने अपनी उन्नति या विकास कर लिया, किंतु उससे समाज को कोई लाभ न मिला, तो उसकी सारी उपलब्धियां व्यर्थ हैं। जैसे जंगल में किसी सुगंधित मनमोहक पुष्प का खिलकर मुरझा जाना, क्योंकि उसके सौन्दर्य एवं सुगंधि का किसी ने लाभ नहीं उठा पाया। अतः प्रमाणित है कि व्यक्ति की मर्यादा समाज में ही अपेक्षित है।” यह उद्गार व्यक्त किया इटियाथोक में कथावाचक आचार्य श्री विनोद जी महाराज ने, कहा की कभी क्षय नहीं होता अक्षय नवमी के दिन किया हुआ दान-पुण्य इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध कर ब्रजवासियों को दिलाई थी मुक्ति,सभी ब्रजवासी लगाते हैं मथुरा वृंदावन व अयोध्या धाम की पैदल परिक्रमा, अक्षय नवमी का यह पर्व आंवले से संबंधित माना जाता है। अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन सतयुग की उत्पत्ति हुई थी। इसी दिन कृष्ण ने कंस का वध भी किया था, और धर्म की स्थापना की थी। अक्षय नवमी के पवित्र अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण रुप भागवत कथा गोवर्धन पूजा छप्पन भोग का उत्सव अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान कृष्ण के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है।
सत्य युगादि यानि अक्षय नवमी के दिन कभी कम न होने वाले पुण्य को पाने के लिए हजारों-लाखों लोग अयोध्या, मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा भी करते हैं। इस त्योहार को आंवला नवमी भी कहा जाता है। इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करना अति शुभ माना गया है। पश्चिम बंगाल में इस दिन को जग धात्री पूजा के नाम से मनाया जाता है। जहां जगद्दात्री की पूजा धूमधाम से की जाती है। इस दिन सभी महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए उपवास रखती है। साथ ही आंवले के वृक्ष की परिक्रमा कर भोग लगाती है और उपवास खोलती है। उपासक को इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए, इसके बाद आंवले के पेड़ की पूजा करना चाहिए। पूजा करते समय आंवले के पेड़ को दूध चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा रोली, अक्षत, फल-फूल आदि से आंवले के पेड़ की पूजा अर्चना करना चाहिए। इसके बाद आपको आंवले के पेड़ की परिक्रमा करना चाहिए। साथ ही दीया जलाना भी महत्वपूर्ण है।अंत में आपको पेड़ के नीचे बैठकर कथा सुनना या पढ़ना चाहिए। कथा समाप्ति के बाद भोग लगाकर प्रसादी वितरण करना चाहिए।