मनोज मिश्र ने हरियाली में तलाश ली खुशहाली की राह
जैविक खेती से चमक सकती है किसानों की तकदीर, शिक्षक मनोज
इटियाथोक गोंडा। शिक्षक मनोज मिश्र जैविक खेती में नित नए आयाम स्थापित कर क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए नजीर बन गए हैं।परंपरागत खेती से हटकर जहां उन्हें एक अलग पहचान मिल रही है वहीं अब खेती में नए प्रयोगों से मिसाल कायम कर रहे हैं।इटियाथोक विकासखंड के भीखम पुरवा गांव के रहने वाले युवा मनोज मिश्र सब्जी,केला और गन्ने की जैविक खेती से भरपूर उत्पादन कर मालामाल हो रहे हैं। वह प्राथमिक विद्यालय भीखम पुरवा में प्रधानाध्यापक भी हैं।श्री मिश्र ने विद्यालय के वातावरण को जिस तरह से छात्र-छात्राओं के लिए अनुकूल बनाया है, किसी अन्य परिषदीय विद्यालय के लिए सपने से कम नहीं है।यहां की छात्राओं ने देश विदेश में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
श्री मिश्र ने बताया कि स्कूल में छुट्टी होने के बाद दिन में उनके पास काफी समय बचता था।उन्होंने इसका उपयोग करने की सोची। चूंकि वह गांव में रहते हैं, इसलिए वैज्ञानिक ढंग से खेती कर आय बढ़ाने का विचार आया।उन्होंने बताया कि गन्ने की फसल को अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है। साथ ही तमाम हानिकारक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग इसमें किसान कर रहे हैं। जिससे न सिर्फ किसानों का खेती करने का खर्चा बहुत बढ़ जाता है, बल्कि पर्यावरण व हमारे मिट्टी का भी बहुत नुकसान हो रहा है,इसी काम को एक सामाजिक चुनौती मानते हुए हमने इस वर्ष एक बीघा जमीन पर जैविक पद्धति गन्ने की फसल लगाई है।
परिणाम स्वरूप फसल अच्छे ग्रोथ के साथ-साथ रोगमुक्त भी है। उन्होंने कहा कि रिंग पिट विधि से यह गन्ना फरवरी माह में लगाया गया एक बीघे में चार फिट का गैप देते हुए 200 गड्ढे तैयार कराये गये। जिनमें प्रत्येक गड्ढों में एक आंख की दस से बारह गिल्लियों का प्रयोग किया गया। गन्ने को कीटों व फंगस से बचाने के लिए नीम की पत्ती,मदार की पत्ती व धतूरे की पत्तियों का संयुक्त उबला हुआ घोल तैयार कर प्रयोग किया जाता है। साथ ही उर्वरकों के रूप में सड़ी गोबर की खाद , गौमूत्र व गाय के ताजा गोबर,गुण व सरसों की खली का संयुक्त घोल इस फसल पर प्रयोग किया जा रहा है।
श्री मिश्र बताते हैं कि गन्ने की फसल मीठी होने के कारण इसमें रोगों का प्रकोप अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक होता है। जिससे किसान परेशान होकर तमाम तरीके के कीटनाशकों का प्रयोग करता है, और यही कारण है, कि किसानों की आय गन्ने की फसल में दिनों दिन घटती जा रही है।अगर किसान भाई अपने आस-पास मिलने वाली उन तमाम चीजों का सदुपयोग करें, जिनको हम महत्व ही नहीं देते तो सिर्फ पारिश्रमिक से ही गन्ने का बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।