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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वाधान में गुरुपूर्णिमा महोत्सव का दिव्य कार्यक्रम आयोजित

आशुतोष महाराज जी की साध्वी शिष्याओं ने कार्यक्रम को संबोधित किया

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वाधान में गुरुपूर्णिमा महोत्सव का दिव्य कार्यक्रम आयोजित

आशुतोष महाराज जी की साध्वी शिष्याओं ने कार्यक्रम को संबोधित किया


गोण्डा।दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वाधान में डॉ संपूर्णानंद टाउन हॉल गोण्डा में गुरुपूर्णिमा महोत्सव का दिव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। यहां वार्षिक महोत्सव पिछले 15 वर्षों से संस्थान के माध्यम से गोण्डा में आयोजित किया जाता रहा है। दिल्ली से पधारी दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की साध्वी शिष्याओं ने कार्यक्रम को संबोधित किया। साधकों को संबोधित करते हुवे साध्वी सुषमा भारती जी ने गुरु पूर्णिमा की विशेषता एवं गुरु की महिमा का व्याख्यान किया। साध्वी जी ने कहा
शताब्दियों पूर्व, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। वही वेद व्यास जी, जिन्होंने वैदिक ऋचाओं का संकलन कर चार वेदों के रूप में वर्गीकरण किया था। 18 पुराणों, 18 उप-पुराणों, उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र, महाभारत आदि अतुलनीय ग्रंथों को लेखनीबद्ध करने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है।
व्यास जी के लिए प्रसिद्ध है- व्यासोच्छिष्ठम् जगत सर्वम् अर्थात ऐसा कोई विषय नहीं, जो महर्षि वेद व्यास जी का उच्छिष्ट या जूठन न हो। ऐसे महान गुरुदेव के ज्ञान-सूर्य की रश्मियों में जिन शिष्यों ने स्नान किया, वे अपने गुरुदेव का पूजन किए बिना न रह सके। अब प्रश्न था कि पूजन किस शुभ दिवस पर किया जाए। एक ऐसा दिन जिस पर सभी शिष्य सहमत हुए, वह था गुरु के अवतरण का मंगलमय दिवस। इसलिए उनके शिष्यों ने इसी पुण्यमयी दिवस को अपने गुरु के पूजन का दिन चुना। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। तब से लेकर आज तक हर शिष्य अपने गुरुदेव का पूजन-वंदन इसी शुभ दिवस पर करता है।
साधक की आत्म-उन्नति का दिन!
क्या आप जानना चाहते हैं की वैज्ञानिक भी आषाढ़ पूर्णिमा की महत्ता को अब समझ चुके हैं? ‘विस्डम ऑफ ईस्ट’ पुस्तक के लेखक आर्थर चार्ल्स स्टोक लिखते हैं- जैसे भारत द्वारा खोज किए गए शून्य, छंद, व्याकरण आदि की महिमा अब पूरा विश्व गाता है, उसी प्रकार भारत द्वारा उजागर की गई सद्गुरु की महिमा को भी एक दिन पूरा विश्व जानेगा। यह भी जानेगा कि अपने महान गुरु की पूजा के लिए उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना? ऐसा क्या खास है इस दिन में? स्टोक ने आषाढ़ पूर्णिमा को लेकर कई अध्ययन व शोध किए। इन सब प्रयोगों के आधार पर उन्होंने कहा- ‘वर्ष भर में अनेकों पूर्णिमाएँ आती हैं- शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा… आदि। पर आषाढ़ पूर्णिमा भक्ति व ज्ञान के पथ पर चल रहे साधकों के लिए एक विशेष महत्व रखती है। इस दिन आकाश में अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (पराबैंगनी विकिरण) फैल जाती हैं। इस कारण व्यक्ति का शरीर व मन एक विशेष स्थिति में आ जाता है। उसकी भूख, नींद व मन का बिखराव कम हो जाता है।’ अतः यह स्थिति साधक के लिए बेहद लाभदायक है। वह इसका लाभ उठाकर अधिक-से-अधिक ध्यान-साधना कर सकता है। कहने का भाव कि आत्म-उत्थान व कल्याण के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अति उत्तम है। कार्यक्रम को संबोधित करते श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य व पूर्वांचल संयोजक स्वामी अर्जुनानंद जी ने कहा दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी केवल ईश्वर की बात नही करते है , मानव के अन्तर्घट में दिव्य नेत्र के द्वारा उस परमात्मा के परम प्रकाश स्वरूप का दर्शन करवाते है। यहां गुरु पूर्णिमा महोत्सव को मनाने आये हजारों साधकों को ब्रह्मज्ञान के द्वारा ईश्वर का दर्शन हुआ है। किस कार्यक्रम की विशेषता यह रहा कार्यक्रम में माता-पिता के साथ आए हुए छोटे-छोटे बच्चों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया ।उक्त कार्यशाला में बच्चों को अनुशासन ध्यान योग और तीव्र बुद्धि विकास के सूत्र बताए गए। कार्यक्रम का सुभारम्भ वेद मंत्रों से हुवा एवं गुरु पूजन मंगल आरती से समापन किया गया। कार्यक्रम में गोण्डा के भक्त उपस्थित होकर गुरु पूजन का लाभ लिया।

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